मुझे अनुमति दो ।

मुझे अनुमति दो ।

मुझे अनुमति दो ।

तीनों मित्रों के बीच निर्धारित किये हुए समय से पहले ही राषिद अपना लापटाप लेकर राजीव और माइकल की प्रतीक्षा में तैयार बैठा था। कुछ देर बात वे एक के बाद एक आये। आपसी कुशल समाचार के बाद राषिद कहने लगाः

प्रिय राजीव पिछली बैठक में तुम ने यह कहा था कि तुम्हारे मन में समय की पाबंदी के विषय के अलावा एक और बात है, जो कुछ मुसलमानों के व्यवहार से संबंधित है।

राजीवः हाँ। देखने में यह आता है कि अन्य लोगों के साथ व्यवहार करने के नियमों का ध्यान न रखना तुम मुसलमानों के पास केवल समय की पाबंदी पर निर्भर नही है, बल्कि व्यवहार के दूसरे क्षेत्रों में भी नियमों का उल्लंघन होता है।

राषिदः वह कैसे ? क्या तुम ने मेरी तरफ से कोई दुर्व्यवहार नोट किया ?

राजीवः नही। नही। .... क्षमा चाहता हूँ। मैं व्यक्तिगत रूप से तुम्हारे बारे में नही कहना चाहता हूँ। लेकिन सामान्य रूप से वास्तविकता यही है। मैं ने एक होटल के दरवाजे पर नोटिस बोर्ड देखा, जिस पर लिखा थाः कुत्तों और अरबों को होटल में प्रवेश करने की अनुमति नही है। मुझे इस नोटिस बोर्ड को देखते ही बहुत कष्ट हुवा तो मैं उस होटल के मालिक से बात किया, और नोटिस बोर्ड लगाने का कारण पूछा.... हाँ उस मालिक के चेहरे पर घमंड और उसके व्यवहार में दृढ़ता पैदा हुई, लेकिन उसने नोटिस बोर्ड लगाने के कुछ उचित कारण प्रधान किये। उसने कहाः मेरी होटल संपन्न है, इस में नेता, मंत्री और धनिक लोग आते हैं.... हुवा यह कि कुछ वर्षो पहले मैं ने कुछ अरब नव युवकों को अपने होटल में स्वागत किया, लेकिन वे इस तरह दुर्व्यवहार किया, जिस से मेरी होटल और उसमें आनेवालों की छवि खराब होती हैः

- एक बार कुछ अरब नव युवकों ने होटल के कर्मचारियों की अनुमति के बिना अपनी इच्छा के अनुसार टेबुल इधर-उधर करने लगे, जिस के कारण होटल में बाधा और अराजकता पैदा हो गयी...

- और एक बार अरब नव युवकों के बीच झगडा हो गया, और वे ऊँची आवाज़ से आपस में चिल्लाने लगे....

- कुछ अरब लोग अधिक ग़लत तरीक़े से अपनी उंगलियाँ थाली में डालते हैं, जिस से अन्य लोगों को प्रतिकर्षण होता है।

- बल्कि कुछ लोगों ने तो भोजन के लिए उपयोग में आनेवाले कांटे या चाकू से अपनी पीठ खुजाया....

होटल के मालिक ने कहाः अरब लोगों के इस दुर्व्यवहार के कारण उसने अपने कई बडे ग्राहक खो दिये। किन्तु इस समस्या के समाधान के लिए अरबों को होटल में प्रवेश करने से रोकने का निर्णय लिया गया।

राषिदः तुम ने जो कुछ कहा, उसमें अधिकतर बातें सही है। लेकिन जैसा कि मैं ने पहले भी कहा कि हम मुसलमानों ने अपने आपके साथ बुरा व्यवहार किया, और अन्य जातियों को अपने प्रति ग़लत सोंचने का आदि बनाया.... लेकिन फिर एक बार मैं इस ग़लती व्यवहार को इस्लाम धर्म से संबंधित करने की ग़लती सुधारूँगा ।

माइकलः शायद तुम इस व्यवहार का कारण भी वातावरण का प्रभाव मानते हो ?।

राषिदः हाँ निश्चित रूप से। मैं वातावरण के प्रभाव को भूल नही सकता। साथ-साथ इन जैसे नव युवकों की गलत शिक्षा भी इसका कारण है।

माइकलः ग़लत शिक्षा का प्रभाव मैं मानता हूँ। लेकिन इस जैसे व्यवहार में वातावरण का प्रभाव मेरी समझ में आनेवाली बात नही है ।

राषिदः इस वातावरण के प्रभाव को समझाने के लिए मैं तुम्हारे सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ – तुम लोग ऐसे देशों मे जीवन-यापन कर रहे हो, जिसके प्रति सब यह जानते हैं कि वह धरती का सबसे ठण्डा प्रांत है। जहाँ पर सर्दी का मौसम लम्बा होता है, और सर्दी बडी कठोर होती है। वर्षा, बर्फ, और ठण्डी-ठण्डी आंधियाँ बहुत चलती हैं। इस जैसे मौसम में इन समस्याओं का ध्यान रखे बिना, और इन समस्याओं का समाधान करने के लिए उपयुक्त उपाय के बिना मानव जीवन यापन नही कर सकता। इसीलिए इन समस्याओं को सामने रखते हुए इन्हीं के अनुसार घरों और कंपनियों की योजना बनाना आवश्यक हो जाता है। इस योजना का कार्यन्वयन के समय मज़बूती और कठोरता के साथ काम करने की कभी आवश्यकता होती है। उदाहरण के रूप से छत और खिड़कियाँ बडी सावधानी के साथ बनाना ज़रूरी है। ताकि पानी या हवा अंदर न आये। और यह भी ज़रूरी होगा कि इन समस्याओं का ध्यान रखते हुए मौसम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयुक्त हीटिंग सिस्टम (गर्माने की सामाग्री) प्रबंध किया जाय.... यह सब चीज़े ऐसे व्यवहार में परिवर्तन हो जाती है, जो सावधान रहने, अनुशासन करने और आयोजन करने का आदि बना देते हैं।

जब कि हमारे देशों में कठोर मौसम की यह समस्याएँ नही है। वहाँ पर मानव अपने जीवन को सुरक्षा करने के लिए इस मूल्य व्यवहार की आवश्यकता नही रखता है। जब मानव को इस जैसे वातावरण के प्रभाव के सामने अकेला छोड़ दिया जाय, तो हमारे देश के अधिकतर लोगों के जीवन में अराजकता एक विशेषता बन जायेगी। तुम यह न भूलो कि हमारा वातावरण अधिकतर रेगिस्तान प्रांत में होता है, जो अपने भीतर सूखे की विशेषता रखता है, और यही विशेषता भावनाओं के सूखा होने का कारण बनती है।

राजीवः तो क्या हम मानव को, उसके निजी जीवन और नैतिक व्यवहार को सुधारे बिना इस वातावरण के प्रभाव से पीडित रहने दें, अराजक जीवन यापन करने के लिए उसको स्वतंत्रता प्रधान कर दें, और लोगों के साथ आदर्श व्यवहार करने के गुण उसको न सिखायें ?

राषिदः परिस्थिति यह नही है। मै तो वातावरण के प्रभाव का विवरण इसलिए कर रहा हूँ, ताकि हम जो परिस्थिति देख रहे हैं, उसके सही कारण का ज्ञान प्राप्त हो।

राजीवः पश्चिमी जाति और पूर्वी (इस्लामिक) जाति के बीच वातावरण का अंतर देख रहे हैं, तो हमे उस धार्मिक अंतर को भी देखना चाहिए, जो इन जातियों में प्रभावी है। तो क्या हम जिन परिस्थितियों के प्रति चर्चा कर रहे हैं, इसका कारण इस्लाम धर्म भी नही है ?

राषिदः इस्लाम धर्म ने मुसलमान के जीवन और उसके समय को नियंत्रण बनाया, ताकि वह अपने पूरे कार्य को प्रभुत्वशाली अल्लाह की प्रार्थना बना दे। (प्रार्थना का आवधारण बहुत विशाल है, जिसका मैं ने पहले विवरण करदिया है।) अधिकतर लोगों को यह ज्ञान प्राप्त नही है कि अन्य लोगों के साथ व्यवहार की कला शिष्टाचार के अधिक दृष्टिकोण इस बात की पुष्टी करते हैं कि इस कला का प्रमुख केन्द्र इस्लाम धर्म है, जो मुसलमानों के द्वारा स्पेन के शहरो तक पहुँचा। स्पेन में इस्लामी शासन के समाप्त होने के बाद मुसलमानों के हाथों से यह कला (शिष्टाचार की कला) ले ली गयी। फिर कई अन्य देशों, जैसे फ्रांस, स्पेन और लंडन ने इस कला की ओर ध्यान दिया, फिर इसका विकास किया, और अन्य कई चीज़ो का संबंध इस से जोडा, यहाँ तक कि प्रस्तुत स्थिति में यह हमारे सामने उपस्थित है।

माइकलः (हँसते हुए) – तुम मुसलमान लोग अपने धर्म की ओर अधिक प्रेरित होने के कारण यह चाहते हैं कि हर अच्छी चीज़ का संबंध अपने धर्म से जोड़ लें .... मैं तुम से यह नही कहूँगा कि तुम अपने कथन को साबित करो। क्योंकि मै यह जानता हूँ इसके लिए विस्तार से चर्चा की आवश्यकता होगी। लेकिन मैं तुम से केवल यह विनती करूँगा कि तुम यह साबित कर दो कि इस्लाम धर्म में यह नियम उपलब्ध है।

राषिदः निश्चित रूप से इस्लाम ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मानव के व्यवहार और नैतिक मूल्यों में परिवर्तन लाया। किन्तु पवित्र ख़ुरआन और रसूल की वाणी में कई विभिन्न नियम उपलब्ध है, जिन को व्यवहार की कला शिष्टाचार के क्षेत्र में प्राथमिकता प्राप्त है।

माइकलः मेरे मित्र यह तो सामान्य बातें है। मैं तो तुम्हारी बातों का उदाहरण चाहता हूँ, ताकि तुम्हारे विचार विश्वसनीय हो।

राषिदः मैं अपने विचारों का वर्णन करने के लिए तुम्हारे सामने कुछ उदाहरण प्रस्तुत करूँगा । हम इस्लाम धर्म के रसूल का उनकी पत्नी और संतान के साथ व्यवहार का उदाहरण देखेः

जब हम किसी पुरुष को अपनी पत्नी के लिए कार का दरवाज़ा खोलते हुए देखते हैं, तो हम उसके प्रति यह कहते हैं कि वह शांत स्वभावी और नरम व्यवहार वाला पुरुष है। लेकिन हमारे रसूल सल्लेल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़मीन पर बैठ कर अपने दोनों हाथ उस पर रखते थे, और अपनी पत्नी से यह कहते थे कि तुम अपने पाँव इन हाथों पर रखकर खडी हो जाओ और ऊँटनी पर बैठ जाओ।

रसूल का अपनी पत्नियों, संतान और सेवकों के साथ व्यवहार संपूर्ण रूप से दयालु था। आप कमज़ोरों को क्षमा करते थे। किन्तु एक बार आप मुसलमानों को नमाज़ पढा रहे थे। आप सजदे की हालत में थे, आप का एक छोटा पोता आपकी पीठ पर बैठ गया, तो आपने इस छोटे बालक का ध्यान रखते हुए उसके पीठ पर से उतर जाने तक आप सजदे से नही उठे।

इस्लाम धर्म ने नैतिकता और विनम्रता का संदेश दिया। इस्लाम धर्म के रसूल में यह गुण उपलब्ध थे। किन्तु रसूल सल्लेल्लाहु अलैहि व सल्लम अधिक विनम्र थे। इसी विनम्रता के कारण आप स्वयं अपने वस्त्र धो लेते थे। आप अपने किसी भी सेवक पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नही डालते थे, और अगर आप अपने सेवकों से कुछ मंगवाते, तो भी आप उनकी सहायता करते। हालांकि आप अपने साथियों के बीच महान रसूल थे और इस्लामी सरकार के शासक थे। ग़ैर मुस्लिमों के साथ भी आपके आदर्शीय व्यवहार के कुछ उदाहरण मिलते हैं। किन्तु एक बार यहूदी व्यक्ति की शव यात्रा आपके पास से गज़री। आप उसके सम्मान में खडे हो गये। आपके आस-पास वाले लोग इस व्यवहार से आश्चर्यचकित हो गये, तो आपने उनसे यह कहा कि मृत्यु के सम्मान में मानवता के बीच कोई अंतर नही।

बल्कि इस्लाम ने तो मानव की चाल और उसकी नैतिकता के बीच संबंध जोड़ दिया। किन्तु पवित्र ख़ुरआन ने चाल के नैतिक नियम निर्धारित किये। वह यह कि चलते समय अपना सर अधिक ऊपर न उठाये, जिससे तुम लोगों के बीच घमण्डी लगो, और न अपना सर ऐसे झुकाओ जिस से तुम नीच लगो। अल्लाह ने कहाः और लोगों से अपना रुख़ न फेर और न धरती में इतराकर चल। निश्चय ही अल्लाह किसी अहंकारी, डींग मारने वाले को पसन्द नही करता। और अपनी चाल में सहजता एवं संतुलन बनाये रख और अपनी आवाज़ धीमी रख।

राजीवः जब कभी इस होटल के मालिक से मेरा सामना हो, तो उसने अरब नव युवकों का जो व्यवहार देखा है, उसके विपरीत मैं उसके सामने इनकी दूसरी छवी प्रस्तुत कर सकता हूँ ?

राषिदः इस जैसे स्थान (होटल) या अन्य स्थानों में इन नव युवकों के दुर्व्यवहार का तुमने चर्चा किया, उसी से संबंधित कुछ इस्लामी आचार तुम्हारे सामने वर्णन करूँगाः

इस्लामी आचार में से यह है कि इस्लाम ने अन्य लोगों को प्रणाम (सलाम) करने का आदेश दिया । समाज में सलाम की रीति फैलाने की ओर प्रेरित किया। यह संकेत दिया कि सलाम आपसी प्रेम का कारण है। इस्लाम ने सलाम के जवाब देने को केवल सामाजिक आचार ही नही, बल्कि धार्मिक फर्ज़ बताया। इसी प्रकार इस्लाम ने भोजन करने वाले को, जब कि उसके मुँह में भोजन हो, सलाम करने से रोका। उस व्यक्ति को सलाम करने से भी रोका, जिसको नींद लग रही हो, और जब लोग सोये हो तो अपनी आवाज़ हल्की रखने का आदेश दिया।

पवित्र ख़ुरआन ने बिना किसी आवश्यकता के आवाज़ ऊँची करने को पसंद नही किया। निस्संदेह आवाज़ों में सब से बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती हैं। (लुक़मान, 19) बल्कि पवित्र ख़ुरआन ने तो अपने किसी मित्र के घर के बाहर खडे होकर बुलंद आवाज़ से पुकारने वाले व्यक्ति को न समझ कहाः जो लोग (ऐ नबी) तुम्हें कमरों के बाहर से पुकारते हैं उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नही लेते। (अल हुजरात, 4) मुहम्मद सल्लेल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी किसी व्यक्ति की डाँट डपट नहीं कि, और न कभी ऊँची आवाज़ से बात किया।

इस्लाम धर्म ने निरंतर रूप से प्रत्येक स्थानः सार्वजनिक मंच, भोजन की जगह, घर और घर के बाहर हर जगह सफाई का आदेश दिया। खाने-पीने के नियम उस समय बताये, जब कि मानवता को भोजन सामाग्री जैसे चम्चा, काटे, का ज्ञान नहीं था, और न प्लेट पायी जाती थी। रसूल सल्लेल्लाहु अलैहि व सल्लम ने केवल तीन उंगलियों से खाने का आदेश दिया। बर्तन में अपना हाथ-इधर उधर न ले जायें। अपने से जो चीज़ निकट है, वह सब से पहले खाये। एक साँस में पानी न पिया जाय, बल्कि तीन साँसों में पिया जाय, भोजन और पानी से अपना पेट न भर लें।.... इस्लाम धर्म ने खाने-पीने के समय होने वाली असंभव चीज़ो का ध्यान रखते हुए सामाजिक व भावुक पहलु की ओर ध्यान दिया, किन्तु भोजन करते समय मेहमान के साथ बात-चीत करने पर प्रोत्साहित किया, ताकि मेहमान न शर्माये, या अपने आप को तन्हा न समझे। हमारे रसूल सल्लेल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी पत्नी को स्वयं अपने हाथों से भोजन कराते थे। आप कहते थेः सब से अच्छा दान वह भोजन का निवाला है जो पुरुष अपने पत्नी के मुँह में रखे। आप सल्लेल्लाहु अलैहि व सल्लम गिलास की उसी जगह से पानी पिया करते थे, जहाँ से आपकी पत्नी आइशा (रजि अल्लाहु अन्हा) पिया करती थी) इस्लाम धर्म ने तो अल्लाह की प्रार्थना और भोजन के बीच संबंध जोड दिया, किन्तु इस्लाम में खाने से पहले अल्लाह का नाम लेने (बिस्मिल्लाह हिर्ररहमान निर्ररहीम पढने), और खाने के बाद अल्लाह की प्रशंसा करने का आदेश दिया गया।

माइकलः प्रिय राषिद। मुझे तुम से यह कहने की अनुमति दो कि तुम्हारे धर्म और तुम्हारे व्यवहार के बीच बडा अंतर है। हम (ग़ैर मुस्लिम) लोग इस क्षेत्र में तुम्हारी धर्म की शिक्षाओं से तुम से ज्यादा निकट हैं।

राषिदः दुख के साथ कहना पडता है कि तुम्हारी बात सही है।