प्रसन्नता के मार्गदर्शक ।

प्रसन्नता के मार्गदर्शक ।

प्रसन्नता के मार्गदर्शक ।

सच्ची प्रसन्नता के मार्ग (जो ईशवर पर विश्वास रखने का मार्ग है) को जानने के लिए इस बात की आवश्यकता है कि हम इसके मार्गदर्शक का विवरण करें, ताकि इस पर चलते समय हमे शाँती और आत्म विश्वास प्राप्त हो।

प्रभुत्वशाली अल्लाह का मार्ग

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र्काल युंग

प्रसिध्द मनोचिकित्सक
ईमान(विश्वास) और मान्सिक स्वस्थ
पिछले तीस(30) वर्षों के दौरान संसारल के ऊँची ऊँची सभ्यता वाले अनेक लोगों ने मुझसे सलाह ली। मैंने कई पीडितों का इलाज किया। मैंने अधड़ उम्र या पैंतीस(35) या इस जैसी उम्र वालों कि समस्याओं में से हर समस्या कि जड़ यही पाया, वे ईमान (विश्वास) और धर्म कि शिक्षों से दूर हैं । यह कहना बिलकुल सत्य होगा, यह सब पीडित रोगों के शिकार बनगये हैं, इसलिए कि यह सब धर्म के द्वारा मिलने वाले मान्सिक सुख से बहुत दूर हैं। इन पीडितों में से हर पीडित उसी समय स्वास्थीक्ता को प्राप्त कर सका, जब वह अपने विश्वास को सुधार लेता है, और जीवन का सामना करने के लिए धर्म के आदेशों से सहायता प्राप्त करने का प्रयास करता है।

ईशवर ने कहा । और यह कि यही मेरा सीधा मार्ग है, तो तुम इसी पर चलो और दूसरे मार्गों पर न चलो कि वे तुम्हे उसके मार्ग से हटाकर इधर-उधर करदेंगे। यह वह बात है जिसकी उसने तुम्हे ताकीद की है ताकि तुम (पथभ्रष्टता से) बचो। (अल-अनआम, 153)

तो फिर प्रसन्नता का मार्ग ईशवर का मार्ग है। उसकी ओर से अपने भक्तों के नाम वसीयत है। (ईशवर ही अपने भक्तों के लिए लाभदायक बातों का अधिक ज्ञान रखता है) निस्संदेह अप्रसन्न है वह व्यक्ति जो ईशवर के मार्ग को छोड दें, और मानवीय विभिन्न मार्गों में प्रसन्नता की आशा रखे। ईशवर के मार्ग के अतिरिक्त किसी अन्य मार्ग में प्रसन्नता नही है। ईशवर ने कहा । तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुपालन किया वह ना तो पथभ्रष्ट होगा और न तकलीफ़ में पडेगा। और जिस किसी ने मेरी स्मृति से मुँह मोड़ा तो उसका जीवन तंग (संकीर्ण) होगा और क़ियामत के दिन हम उसे अन्धा उठाएँगे। (ता-हा, 123, 124)

प्रसन्नता उस व्यक्ति के लिए है जो इस मार्ग पर चले और मार्गदर्शन का अनुपालन करें। जो इस मार्ग से मुँह मोडेगा, उसका जीवन संकीर्ण होगा। चाहे वह प्रसिद्ध और विख्यात ही क्यों न हो। संकीर्ण का मतलब संसार और परलोक में तंगी और अप्रसन्नता है।

शरीर और आत्मा की प्रसन्नता को इकट्ठा करने वाला मार्ग

यह सब जानते हैं कि मनुष्य आत्मा और शरीर का मिश्रण है। हर एक के लिए उसकी अपनी ख़ुराक है। कुछ दर्शन और मार्ग आत्मा को महत्व देते हुए शरीर की आवश्यकताओं का इन्कार किया, जो एक बडी समस्या बनगया । इसके विपरित आधुनिक भौतिकवाद ने आत्मा को मिटा दिया और शरीर को उसकी सारी इच्छाएँ दे दी। जिसके कारण मानवता का बडा समूह पशु-पक्षी के समान अपनी हवस को पूरा करनेवाला, या व्यर्थ सामाग्री बन गया है। इस्लाम के मार्ग ने देवत्व प्रकाश से आत्मा को स्वस्थ रखा, शरीर की सुरक्षा की, और शरीर की आवश्यकताओं और हवस को पवित्र हलाल से पूरा किया । जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उसमें आख़िरत के घर का निर्माण कर और दुनिया में से अपना हिस्सा न भूल, और भलाई कर जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ भलाई की है। (अल-क़सस, 77)

ईशवर के रसूल (मुहम्मद) ने सल्मान फ़ारसी की इस बात को सराहाः आप के ईशवर का आप पर अधिकार है, आप के शरीर का आप पर अधिकार है, आपके संतान का आप पर अधिकार है, परन्तु हर व्यक्ति को उसका अधिकार दो। (इस हदीस को इमाम बुख़ारी ने वर्णन किया है।)

प्रसन्नता और बहादुरी का मार्ग

जो व्यक्ति विश्वास (ईमान) का मज़ा चकलें, तो फिर वह कभी उसको छोड़ न पायेगा, चाहे उसकी गर्दन पर तलवार रख दी जाय। फ़िरऔन के जादूगर जब ईमान लाए। प्रसन्नता के मार्ग पर चलने लगे तो फ़िरऔन ने उन्हें धमकी दी। उनसे यह कहा, जैसा कि ख़ुरआन ने विवरण किया है। अच्छा, अब मैं तुम्हारे हाथ और पाँव विपरीत दिशाओं से कटवादूँगा और खजूर के तनों पर तुम्हें सूली दे दूँगा। तब तुम्हें अवश्य ही मालूम हो जाएगा कि हममें से किस की यातना अधिक कठोर और स्थायी है। (ता-हा, 71)

तो स्थिरता के साथ उनका पुनः उत्तर यह था। उन्होंने कहा, जो स्पष्ट निशानियाँ हमारे सामने आ चुकी है उनके मुक़ाबले में सौगन्ध है उस सत्ता की जिसने हमें पैदा किया है, हम कदापि तुझे प्राथमिकता नही दे सकते। तो जो कुछ तू फ़ैसला करनेवाला है, कर ले। तू बस इसी सांसारिक जीवन का फ़ैसला कर सकता है। (ता-हा, 72)

यह लोग ईमान लानेके कुछ ही क्षणों बाद जिस स्थिरता का प्रदर्शन किया है। इसका कारण केवल यह है कि वे (ईमान) विश्वास का आनंद ले चुके थे। इसी आनंद ने उन्हें अपने निर्णय और फ़ैसले में, हत्या की धमकी मिलने के समय भी अधिक सुख और स्थिरता प्राप्त की।

प्रसन्नता मन में पाये जानेवाले सुख और खुशी का नाम है

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रोज मारी हाओ

ब्रिटीष पत्रकार
महत्वपूर्ण उत्तर
मैंने इस्लाम धर्म में आत्मा और भौतिकवाद कि दुविधा महत्वपूर्ण उत्तर प्राप्त करलिया है। मुझे यह ज्ञान होगया कि बिलकुल आत्मा के समान शरीर का भी अधिकार है और इस्लाम कि निगाह में भौतिक आवश्यक्तायें स्वभाविक प्रावुत्ती हैं जिनको पुरा करने कि आवश्यक्ता है, ताकी मानव बलवान और प्रभाविक जीवन बिता सके, मगर इस्लाम ने संथुलित रूप से इन भौतिक आवश्यक्ताओं को पूरा करने के लिए कुछ उच्च नियम बनाया है, जो मान्सिक सुख और ईशवरके आदेशों के पालन का कारण बनते है, परन्तु बियाह इस्लाम कि निगाह में वह एक मान्सिक प्रावुत्ती को पूरा करने का सही जायज़ रास्ता है। नमाज, रोज़ा, प्रार्थना और ईशवर पर विशवास मानव के लिए आध्यात्मिक पक्ष को पूरा करने के रास्ते है, और इस प्रकार से मानव्य सम्मानित जीवन के लिए आवश्यक संतुलन उपलब्द हो जाता है।

सुख और शाँती के बिना प्रसन्नता नही है, और न विश्वास (ईमान) के बिना सुख और शाँती है। ईशवर ने कहा। वही है जिसने ईमानवालों के दिलों में सकीनत (प्रशान्ति) उतारी, ताकि अपने ईमान के साथ वे ईमान की और अभिवृद्धी करें – आकाशों और धरती की सभी सेनाएँ अल्लाह ही की हैं, और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है। (अल-फ़तह, 4)

ईमान दो भागों में प्रसन्नता देता है। प्रथम1- पाप और अपराध के गड़्ढे में गिरने से रोकता है। यही अप्रसन्नता और तंगी का गंभीर कारण है। जब मानव का मन ईशवर पर विश्वास से ख़ाली हो, तो कोई दूसरी चीज़ यह ज़मानत नही दे सकती कि हवस और इच्छाएँ उसको नश्वर पाप की और न ले जायेंगी। द्वितीयः ईमान प्रसन्नता के लिए महत्वपूर्ण शर्त है। प्रसन्नता का मतलब सुख और शाँती है। संकटों और समस्याओं के समुद्र में मुक्ती का प्लाटफार्म ईमान के सिवा कुछ नही है। ईमान के बिना डर और चिंता अधिक होते जायेंगे। लेकिन ईमान के साथ ईशवर की महानता के सिवा कोई चीज़ डरने का अधिकार नही रखती है।

ईमानवाले का मन हर प्रकार की समस्या को साधारण समझता है। इसलिए कि वह ईशवर पर भरोसा रखता है। ईमान से ख़ाली रहनेवाला दिल डाली से टूटे हुए पत्ते के समान है, जिसको तेज़ आँधी उड़ाये लिये फिरती है। आप के ख़्याल में संसार से चले जाने और मृत्यु से अधिक कौनसी चीज़ मानव को डरा सकती है। परन्तु मृत्यु भी ईमानवाले कि दृष्टि में डर का कारण नही है। बल्कि यह भी सुख का कारण है। उस व्यक्ति के लिए मृत्यु भी कितनी लाभदायक है जिसका मन ईमान और विश्वास से भरा हुआ हो।

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विलियम जेम्स

अमेरिका दर्शनिक
ईमान (विशवास) और चिंता दोनों एक जगह इखटठा नही हो सकते
निशचिंता रूप से समुद्र कि बड़ी बड़ी लहरें समुद्र के भीतर के शाँति को कभी अशाँत नही करती और ना उस्के सुखों को समाप्त करती है। इसी प्रकार से जब मानव ईशवर पर गहरा विशवास करलेता है तो वह चिंता से मुक्ती प्राप्त करलेता है। संतुलित जीवन बिताता है, और भविष्य में आने वाली दुविधाओं का सामना करने के लिए सदा तैयार रहता है।

ईमान मानवीय व्यक्तित्व में सुख और शाँती की भावना पैदा करता है। ईमानवाला ईशवर के मार्ग में चैन से चलता है। क्येंकि सच्चा ईमान सदा उसको हर समय ईशवर की सहायता और सुरक्षा की आशा प्रदान करता है। उसकी यह भावना होती है कि हर क्षण में ईशवर उसके साथ है। ईशवर ने कहा । और यह कि अल्लाह मोमिनों के साथ होता है। (अल-अनफ़ाल, 19)

ईमानवाला चाहे कितने ही समस्याओं और विपदाओं का सामना करें। फिर भी ईशवर की पुस्तक और मार्गदर्शन के प्रकाश से रोशन करनेवाली उसकी वाणी इस बात की ज़िम्मेदार है कि ईमानवाले के मन से ग़लत विचार और उसके शरीर से तकलीफ दूर कर दे। उसके डर को शाँती और सुख से, अप्रसन्नता को प्रसन्नता और राहत से बदल दे। इसीलिए यह ईमान मानव को मान्सिक सुख और आध्यात्मिक प्रसन्नता की ओर ले जाता है। जिसकी कोई दूसरी प्रसन्नता मुक़ाबला नही कर सकती। चाहे वह संसार के सारे निधियों का मालिक बन जाये।

संसार से स्वर्ग की ओर प्रसन्नता की यात्रा

सब यह जानते हैं कि मानवीय जीवन के तीन स्थितियाँ हैं। 1. सांसारिक, 2. मृत्यु के बाद ख़बर में, 3. कियामत के दिन । प्रसन्नता का मार्ग इन तीनों स्थितियों से गुज़ारता है। सांसारिक जीवन के बारे में ईशवर ने यह कहा। जिस किसी ने भी अच्छा कर्म किया, पुरुष हो या स्त्री, शर्त यह है कि वह ईमान पर हो तो हम उसे अवश्य पवित्र जीवन-यापन करायेंगे। ऐसे लोग जो अच्छा कर्म करते रहे उसके बदले में हम उन्हें अवश्य उनका प्रतिदान प्रदान करेंगे। (अल-नहल, 97)

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कास्यंस वलायी

अमेरिका बाक्सर
सुख का प्लाटर्फ़ाम
जब भी मुसलमान खुरान को गहराई से पडेगा और इस्लामिक आदेशों का सच्चे दिल से पालन करेगा, तो वह इस्लाम कि नाव के द्वारा सुख के प्लाटर्फ़ाम तक पहुँच जाएगा, शाँति और सुख कि रेल पर सवार हो जायेगा, और दानव कि धोकों से दूर रहेगा।

यानी हम संसार में उसको सुखी और प्रसन्न जीवन देंगे। चाहे वह निर्धन ही क्यों न हो। इस प्रकार कि उसको मान्सिक और आध्यात्मिक सुख चैन और राहत प्राप्त होगी। ईशवर पर उसको विश्वास होगा। उसी की ओर उसको आंतरिक आनंद मिलता है और वह उसी ईशवर पर भरोसा रखता है। ईमान वाले के अपनी ख़बर में प्रसन्नता के प्रति अबु हुरैरा द्वारा ईशवर के रसूल से वर्णन की हुई यह वाणी (हदीस) है। ईशवर के रसूल ने कहाः निश्चय ईमानवाला अपनी क़बर में हरे-भरे बाग़ में होता है। उसके लिए ख़बर को सत्तर हाथ फैला दिया जाता है, और चौदवी रात के चाँद की तरह उसकी ख़बर रोशन होती है (इस हदीस को इमाम अलबानी ने हसन कहा है।) परलोक में ईमानवाले की प्रसन्नता के प्रति ईशवर ने यह कहा। रहे वे जो भाग्यशाली होंगे तो वे जन्नत में होंगे, जहाँ वे सदैव रहेंगे, जब तक आकाश और धरती स्थिर रहें। बात यह है कि तुम्हारे रब की इच्छा ही चलेगी। यह एक ऐसा उपहार है, जिसका सिलसिला कभी न टूटेगा। (हूद, 108)

वे सांसारिक जीवन में भाग्यशाली हैं, और परलोक में भी सदैव अनुग्रह से पूर्ण जीवन पानेवाले हैं। इस्लाम सदैब प्रसन्नता का संदेश लेकर आया है। संसारिक जीवन में मानव की प्रसन्नता और परलोक में इसकी प्रसन्नता। जो ईशवर के पास है वह भला और शाश्वत है। बल्कि ईशवर ने संसार और परलोक की प्रसन्नता को मिलेझुले साथी माना है। इनके बीच कोई झगड़ा या तनाव नही है। यह संसार परलोक के लिए और क़ियामत के दिन उच्च प्रसन्नता को प्राप्त करने के लिए केवल एक मार्ग ही तो है। संसार और परलोक में सदैव प्रसन्नता का मार्ग एक है। ईशवर ने कहा। जो कोई दुनिया का बदला चाहता है तो अल्लाह के पास दुनिया का बदला भी है और आख़िरत का भी। अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है। (अल निसा, 134)




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