प्रसन्नता के मार्ग से दूर रहने का कष्ट और दुर्भाग्य ।

प्रसन्नता के मार्ग से दूर रहने का कष्ट और दुर्भाग्य ।

प्रसन्नता के मार्ग से दूर रहने का कष्ट और दुर्भाग्य ।

संसार और परलोक में प्रसन्नता का मार्ग

निश्चय इस्लाम हर समय और स्थान के लिए क्षमतावान है। मानवीय प्रकृति के अनुसार है। जीवन के परिवर्तन का ख़्याल रखता है। विकास और सभ्यता के साथ चलता है। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, रक्षणात्मक, और इसके अतिरिक्त कई समस्याओं का समाधान रखता है। लेकिन अधिकतर लोग इस प्रकाशवान मार्ग से भटक गये। कुछ अन्य लोगों ने इस मार्ग से मानवता को दूर करने के लिए इसका विरोध किया और इसकी छवी बिगाड़ दी। यही वह कारण है जिससे बहुत से व्यक्ति और समूह अप्रसन्न हो गये। ईशवर ने अपने नियमों का पालन और मार्गदर्शन के अनुयायी के लिए संसार और परलोक में प्रसन्नता की ज़मानत ली है। इस मार्ग से दूर रहने वाले के लिये अप्रसन्नता और रूसवाई का फैसला किया है।

निश्चय मानवता को ईशवर ने इस्लाम धर्म का ज़िम्मेदार बनाया, ताकि उसका मामला सीधा हो जाये। संसार और परलोक में प्रसन्न हो जाये, और कहीं दुखी न रहे। लेकिन मानवीय आत्मा (अपनी प्रकृति के अनुसार) हवस, इच्छाओं और आशाओं पर प्रतिबंध लगाना पसन्द नही करती। चाहे यह प्रतिबंध उसी की भलाई के लिए हो। इसी कारण ईशवर ने सत्य जाननेवालों को उस भलाई और सत्यता की ओर संदेश देने का आदेश दिया, जिसकी ओर उनकी मार्गदर्शनी की गयी है। उन्हें यह आदेश दिया गया, सारे संसार को यह संदेश पहुँचाए। ईशवर के रसूल को केवल इसीलिए भेजा गया, ताकि वह और उनका समूह सारी मानवता प्रसन्न हो। ईशवर ने कहा। हमने तुमपर यह ख़ुरआन इसलिए नही उतारा है कि तुम मशक़्क़त में पड़ जाओ। (ता-हा, 2)

ईशवर ने यह भी कहा। हमने तुम्हें सारे संसार के लिए सर्वथा दयालुता बनाकर भेजा है। (अल-अंबिया, 107)

रसूल का अनुसरण करना, उसके मार्ग पर चलना, और उसकी बतायी हुई बातों का पालन करना प्रसन्नता का महत्वपूर्ण स्थंभ और मुक्ति का मार्ग है। ईशवर के आदेश और निशेध के अनुसार जिस प्रकार से हमें ईशवर द्वारा जीवन यापन करने का आदेश दिया गया, उसका परिणाम (फल) संसार और परलोक की प्रसन्नता है। इस सीमा को पार करना संसार और परलोक की अप्रसन्नता का कारण है। ईशवर ने सच कहा। और जिस किसी ने मेंरी स्मृति से मुँह मोड़ा तो उसका जीवन तंग (संकीर्ण) होगा और क़ियामत के दिन हम उसे अन्धा उठायेंगे। वह कहेगा, ऐ मेरे रब। तूने मुझे अन्धा क्यों उठाया, जबकि मैं आँखों वाला था। वह कहेगा, इसी प्रकार (तू संसार में अंधा रहा था) तेरे पास मेरी आयतें आई थी तो तूने उन्हें भुला दिया था। उसी प्रकार आज तुझे भुलाया जा रहा है। (ता-हा, 124-126)

कैसे तुम सुखी और संतोष जनक जीवन-यापन करोगे

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हारबर्ट र्जाजविल्स

ब्रिटीष लेखक
इस्लाम र्धम का सवेरा
कितनी ऐसी पीडियाँ है, जो महान इस्लाम र्धम को सवेरा होने से पहले पहले अप्रसन्नता और डर से पीडित होंगी। (इस्लाम वह महान र्धम है जिसके प्रती यह लगता है कि सारा इतिहास उसी के इर्द गिर्द घूमता है) उस दिन सारा संसार शाँत जनक हो जायेगा और उस दिन सारे मनों में सुख भर जायेगा ।

निश्चय उस मुस्लिम के बीच जिसके बारे में ईशवर ने यह कहा। हम उसे अवश्य पवित्र जीवन-यापन कराएँगे। (अल-नहल, 97)

और उस व्यक्ति के बीच बहुत बडा अंतर है, जिसके बारे में ईशवर ने यह कहा। उसका जीवन तंग (संकीर्ण) होगा । (ता-हा, 124)

सुखी जीवन अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी जीवन में ईशवर के आदेशों का पालन करने और उसके फैसले से संतुष्ट होने में उपलब्ध है। इसलिए कि वह ईशवर की रक्षा और ध्यान में जीवन-यापन करता है। ईशवर ने कहा। ऐसे ही लोग है जो ईमान लाये और जिनके दिलों को अल्लाह की याद से आराम और चैन मिलता है। सुनलो, अल्लाह की याद से ही दिलों को संतोष प्राप्त हुआ करता है। (अल-रअद, 28)

मानव के हर वह कर्म जो ईशवर के आदेशों के विरोध में हो। उन पर मन के सुख का पुनःप्रभाव उस व्यक्ति के समान होगा, जो कष्ट और तंगी में जीवन-यापन करता है। जैसे ईशवर ने कहा। अतः (वास्तविकता यह है कि) जिसे अल्लाह सीधे मार्ग पर लाना चाहता है उसका सीना इस्लाम के लिए खोल देता है। और जिसे गुमराही में पड़ा रहनेदेना चाहता है, उसके सीने को तंग और भिंचा हुआ कर देता है, माने वह आकाश में चढ़ रहा है। इस तरह अल्लाह उन लोगों पर गन्दगी डाल देता है जो ईमान नही लाते। (अल-अनआम, 125)

मानव की निराशा, अप्रसन्नता और तंगी का कारण ग़रीबी या बीमारी नही है। बल्कि हर कार्य या मामले में भ्रम से पीडित होना है। दुर्भाग्यशाली मानव के पास धन के आने या जाने से अप्रसन्नता दूर नही होती। क्योंकि धन उसके लिए अप्रसन्नता का कारण नही है। बल्कि असली कारण उसके सोंच-विचार की विधि है। धन की ज्यादती या कमी, स्वस्थता या बीमारी कभी-कभी अप्रसन्नता के बडने का कारण हो सकती है। ईशवर ने कहा। अतः उनके माल तुम्हें मोहित न करें और न उनकी संतान ही। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि उनके द्वारा उन्हें संसारिक जीवन में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकालें कि वे इन्कार करनेवाले ही रहें। (अल-तौबा, 55)

ईशवर ने यह भी कहा । और उनके माल और उनकी औलाद तुम्हें मोहित न करें। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि उनके द्वारा उन्हें संसार में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकलें कि वे कुफ़्र की हालत में हो। (अल-तौबा, 85)

मानव की अप्रसन्नता का संबन्ध मालदारी या ग़रीबी से नही है। न बीमारी या परीक्षा से है। बल्कि अप्रसन्नता ईशवर से दूरी, उसके मार्ग से मुँह मोडने, भक्त और ईशवर के बीच वाले संबन्ध के टूटजाने में है। ईशवर के रसूल ज़करिया जब अपने ईशवर से प्रार्थना द्वारा विनती की, तो यह कहा। और मेरे रब। तुझे पुकार कर मैं कभी बेनसीब नही रहा। (मरयम, 4)

ऐ मेरे ईशवर, पिछले ज़माने में मेरी पुकार सुनकर आपने मुझे सम्मानित किया। आपने मेरी पुकार स्वीकार करते हुए मुझे प्रसन्न बना दिया। ये मामला केवल ज़करिया के साथ ही ख़ासकर नही है। बल्कि हमारे ईशवर ने हमे यह सूचना दी है, उसने कहा, और जब तुमसे मेरे बन्दे मेरे संबन्ध में पूछें तो मैं तो निकट ही हुँ, पुकारने वाले की पुकार का उत्तर देता हूँ जब वह मुझे पुकारता है, तो उन्हें चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझपर ईमान रखें, ताकि वे सीधा मार्ग पा-लें। (अल-बक़रा, 186)

जब तक मानव और ईशवर के बीच प्रत्यक्ष रूप से संबन्ध जुडा रहेगा, तो मानव के लिए प्रसन्नता उपलब्ध रहेगी। जब यह संबन्ध टूट जाये तो अप्रसन्नता प्रवेश होगी। इस्लाम धर्म के पालन करने में मानव जिस प्रकार से कमी करेगा, उसी प्रकार से वह मानवीय और सांसारिक भ्रम और बेचैनी से पीडित होगा । इसीलिए ईशवर ने मार्गदर्शन और दयालुता के बीच, गुमराही और अप्रसन्नता के बीच संबन्ध रखा है। पहली चीज़ (मार्गदर्शन और दयालुता) के प्रति ईशवर ने यह कहा। वही लोग हैं जो अपने रब के सीधे मार्ग पर हैं और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं। (अल-बक़रा, 5)

ईशवर ने यह भी कहा। यही लोग हैं जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ हैं और दयालुता भी, और यही लोग हैं जो सीधे मार्ग पर हैं। (अल-बक़रा, 157)

और ईशवर ने यह भी कहा। फिर यदि मेरी ओर से तुम्हें मार्गदर्शन पहुँचे, तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुपालन किया वह न तो पथभ्रष्ट होगा और न तक़लीफ़ में पड़ेगा। (ता-हा, 123)

मार्गदर्शन का मतलब पथभ्रष्ट से दूर रहना है। दयालुता का मतलब अप्रसन्नता से दूर रहना है। इसी बात को ईशवर ने सूरे ता-हा के प्रारंभ में बताया । हमने तुमपर यह ख़ुरआन इसलिए नही उतारा है कि तुम मशक़्क़त में पड़ जाओ। (ता-हा, 2)

मानव के लिए ख़ुरआन को अवतरित करने और उससे अप्रसन्नता को दूर करने की समस्या को एक साथ विवरण किया गया। जैसे ख़ुरआन के अनुयायियों के पक्ष में इसी सूरे के अंत में ईशवर ने यह कहा। वह न तो पथभ्रष्ट होगा और न तकलीफ़ में पड़ेगा । (ता-हा, 123)

मार्गदर्शन, अनुग्रह और दयालुता सहसंबन्धी है। जो एक दूसरे से अलग नही हो सकते। इसी प्रकार पथभ्रष्ट और अप्रसन्नता सहसंबन्धी है। जो एक दूसरे से बिदा नही हो सकते। ईशवर ने कहा। निस्संदेह अपराधी लोग गुमराही और दीवानेपन में पड़े हुए हैं। (अल-क़मर, 47)

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बर्नार्ड शाह

ब्रिटीष लेखक
मानवता को मुक्ती दिलाने वाला
न्याय कि बात यह है कि मुहम्मद को मानवता का मुक्ती दिलाने वाला कहा जाये। मेरा विशवास है कि मुहम्मद के समान कोई व्यक्ती इस आधुनिक संसार का शासन करले तो वह संसार के सारे आपद्धियों को खतम करदेगा और इसमें प्रसन्नता और शाँती पैदा करदेगा

सईर एक वचन है। इसका बहुवचन सुउर हैं। इसका माना अप्रसन्नता कि अंत वाला दण्ड है। अपराधी लोगों के विश्रामगृह के मुक़ाबले में ईशवर ने इसी सूरे में डर रखनेवालों के विश्रामगृह के प्रति यह कहा। निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और नहरों के बीच होंगे, प्रतिष्ठित स्थान पर, प्रभुत्वशाली सम्राट के निकट। (अल-क़मर, 54-55)

यही प्रसन्नता का मार्ग है। अगर आप इस पर चलना हैं और इसका अनुयायी बनना चाहते हैं। यह मार्ग मिथक, आध्यात्मिक बिगाड़ या केवल विचार पर आधारित नही है। यह प्रसन्नता का मार्ग है। और यही ज्ञान और सभ्यता का मार्ग है।




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