(इस्लाम के) क़ानून बनाने के विधान

(इस्लाम के) क़ानून बनाने के विधान

(इस्लाम के) क़ानून बनाने के विधान

इस्लामी क़ानून अमूल्य नियम और विधान पर आधारित है, जिनसे इस क़ानून के अन्दर हर मानव, समय और स्थान के लिए आवश्यक है । इनमें से कुछ महत्वपूर्ण नियम निम्न लिखे जा रहे हैं।

सरलता

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अर्नाल्ड टोयेम्बी

ब्रिटीष इतिहासकार
मुहम्मद के ईश देवत्व का संदेश
मुहम्मद ने अपने सारे जीवन को अरब समाज में अपने संदेश के दो पक्षों को उपयुक्त बनाने में लगा दिया। वह दो पक्ष यह हैः धार्मिक विचारों में समानता और शासन के नियम और विधी में समान्ता। निश्चय इस्लाम धर्म के संपूर्ण नियमों के कारण यह दो चिज़ें उपयुक्त हो गई, क्योंकि इस्लाम अपने अंदर एक ही समय में एकता और प्राधिकरण का अधिकार रखता है। इसी कारण इस्लाम के भीतर ऐसी शक्तिशाली प्रेरणा पैदा हो गई, जिसने एक अज्ञानी समुदाय को सभ्य समुदाय बनादिया ।

इस्लाम के सारे आदेश उसके माननेवालों की क्षमता और शक्ति से बाहर नही है। न उसमें कोई परेशानी है, जो उचित सरल व्यवहार से बाहर हो। इसलिए कि धर्म बिल्कुल आसान है। ईशवर ने कहा। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख़्ती और कठिनाई नही चाहता। (अल-बक़रा, 185)

ईशवर ने कहा अल्लाह चाहता है कि तुम पर से बोझ हलका कर दे, क्योंकि इन्सान निर्बल पैदा किया गया है। (अल-निसा, 28)

ईशवर ने कहा अल्लाह किसी जीव पर बस उसकी सामर्थ्य और समाई के अनुसार ही दायित्व का भार डालता है। (अल-बक़रा, 286)

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जॉर्ज सार्थोन

हार्वर्ड और वाशिंग्टन के विश्वविद्यालय का लेक्चरर
गहरा सिद्धांत
इस्लाम के पाँच सतूनों में एसी कोई बात नही है जिस्से मुस्लिम के अतिरिक्त कोई व्यक्ति नफ़रत करे। हालांकि इस्लाम के नियम साधारण और बहुत कम है, फिर भी इन में किसी बदलाव की आवश्यकता नही है। यही वह कारण है कि इस्लामिक सिद्धांत हर मुस्लिम के मन में बैठ जाता है। निस्संदेह इस्लामिक सिद्धांत के वास्तविक महत्व को स्वयं शक्ति व प्रभाव प्राप्त है।

आइषा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहाः ईशवर के रसूल (मुहम्मद) को जब भी दो बातों में से किसी एक के चयन करने का विकल्प दिया गया, तो आपने इनमें से अधिकतर सरल बात ही का चयन किया, जब कि वह न हो। अगर वह पाप की बात हो तो आप ही सब से ज्यादा उससे दूर रहते थे। ईशवर की क़समः आपके साथ होनेवाले किसी भी व्यवहार का आपने अपने लिए कभी प्रतिकार (बदला) नहीं किया। जब ईशवर के आदेशों का उल्लंघन किया जाए, तो फिर आपने ईशवर के लिए प्रतिकार किया। (इस हदीस को इमाम बुख़ारी ने वर्णन किया)

इस्लामी क़ानून में दायित्व का कम होना भी कष्ट को दूर करने का एक उदाहरण है। इस प्रकार से कि बिना कष्ट और मज़बूरी के मानव के लिए इस दायित्व का उठाना आसान होता है। इसलिए कि जबरदस्ती से मजबूर करने में कष्ट और परेशानी है, जब कि (इस्लाम में) कष्ट बिल्कुल नही है। ईशवर ने कहा । और धर्म के मामले में तुमपर कोई तंगी और कठिनाई नही रखी। (अल-हज, 78)

इसी प्रकार दायित्व को लागू करने का लक्ष्य मानव को इस संसार और भविष्य संसार में सुखी जीवन तक पहुँचाना है। परन्तु इस्लामिक नियम मानवीय व्यक्तित्व की क्षमता के अनुसार ही लागू किये जाते हैं। ईशवर ने कहा । ऐ ईमान लानेवालों । ऐसी चीज़ों के विषय में न पूछो कि वे यदि तुमपर स्पष्ट कर दी जाएँ तो तुम्हें बुरी लगें। यदि तुम उन्हें ऐसे समय में पूछोगे, जबकि ख़ुरआन अवतरित हो रहा है, तो वे तुमपर स्पष्ट कर दी जाएँगी। अल्लाह ने उसे क्षमा करदिया । अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है। तुमसे पहले कुछ लोग इस तरह के प्रश्न कर चुके हैं, फिर वे उसके कारण इन्कार करनेवाले हो गए। (अल-माइदा, 101, 102)

हितों का ध्यान

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वैडोरान्ट

अमेरिकन लेखक
अधिक धर्म महत्वपूर्ण विषय है
मुसलमानों कि नैतिकता, धार्मिक और शासन के नियम सारे धर्म पर आधारित हैं। इस्लाम सारे धर्मों में अधिकतर साधारण और साफ है। इस्लाम कि जड़ ईशवर (अल्लाह) के अतिरिक्त किसी और को पूज्य प्रभु न मानने और मुहम्मद को ईशवर का रसूल मानने की गवही देना है।

इस्लाम धर्म के आदेशों का विचार करने वाले के लिए यह बात खुलकर सामने आती है कि इन आदेशों का लक्ष्य लोगों कि आवश्यकताओं को उपलब्द कराना है। इस प्रकार कि लोगों के लिए भलाई और अच्छाई उपयुक्त हो। उनसे इस संसार और भविष्य संसार में बुराई और बिगाड दूर हो, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप में। हर स्थान और हर समय। ईशवर ने कहा । हमने तुम्हें सारे संसार के लिए सर्वथा दयालुता बनाकर भेजा है। (अल-अंबिया, 107)

दयालुता लोगों की आवश्यकताएँ उपयुक्त कराने के लिए है। वरना अगर दया लक्ष्य न हो, तो रसूल को दयालुता के गुण से विवरण न किया जाता । सारे दायित्व का मूल इस संसार और भविष्य संसार में मानव की आवश्यकताएँ हैं । इसलिए कि ईशवर को अपने किसी भक्त की आवश्यकता नही है। न उसको किसी की आज्ञाकारी से लाभ है, और न किसी की अवज्ञाकारी से नष्ट। सारे नियम न्याय, दयालुता, आवश्यकताएँ और तत्वदर्शिता पर आधारित हैं। हर वह बात जो न्याय से अन्याय की ओर, दया से निर्दया की ओर सुधार से बिगाड़ की ओर, और तत्वदर्शिता से अतत्वदर्शिता की ओर जाती हो, वह इस्लामी नियम में से नही है।

न्याय

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नसीम सोस्त

नसीम सूसह इराख़ का यहुदी लेक्चरर
इस्लाम आनंद और शान्ति
यहूद को इस्लाम के सायेतले शाँती और न्याय मिला। जिसके द्वारा वे अन्याय और ज़ुल्म से सुरक्षित रहे। वे कई सदियों से सुख और शाँती में जीवन बिता रहे हैं।

न्याय को सामान्य विधि के रूप में स्थापना करने पर कई इस्लामी प्रमाण उपलब्ध हैं। हमें कई ऐसी बातें मिलती है जो न्याय को स्थापना करने और अन्याय से (चाहे विरोधी के साथ क्यों न हो) द्वेष करने का आदेश दिया है। ईशवर ने कहा । ऐ ईमान लानेवालों । अल्लाह के लिए गवाह होकर दृढ़तापूर्वक, इन्साफ़ की रक्षा करनेवाले बनो और ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इन्साफ़ करना छोड दो। इन्साफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर है। (अल-माइदा, 8)

संपूर्णता और समग्रता

निस्संदेह किसी भी धर्म और सन्देश के सत्य होने का प्रमाण उसकी पूर्णतः और समावेश की विशेषता से पूर्ति होना है। ईशवर ने कहा । हमने किताब में कोई भी चीज़ नही छोडी है। (अल-अनआम, 38)

ईशवर ने यह भी कहा हमने तुमपर किताब अवतरित की हर चीज़ को खोलकर बयान करने के लिए और मुस्लिमों (आज्ञाकारियों) के लिए मार्गदर्शन, दयालुता और शुभ-सूचना के रूप में। (अल-नहल, 89)

इस्लाम धर्म का समावेश सिद्धांत और विचार में, प्रार्थना और पूजा में, चरित्र और आचार में, नियम, आदेश, और पद्धतियों में, बल्कि जीवन के हर भाग में खुलकर सामने आता है।

संतुलन और मध्यवर्ती

इस्लाम धर्म सन्तुलन, मध्यस्थ और न्यायिकता का धर्म है। और इसी प्रकार हमने तुम्हें बीच का एक उत्तम समुदाय बनाया है। (अल-बक़रा, 143)

इस्लाम के आदेश और नियम में हर विषय अधिकतर गहराई के साथ तैयार बनाया गया है। उसने आकाश को ऊँचा किया और संतुलन स्थापित किया (अर-रहमान, 7)

ईशवर ने मुस्लिमों को भी हर विषय में संतुलन रखने का आदेश दिया । जो खर्च करते हैं तो न तो अपव्यय करते हैं और ना ही तंगी से काम लेते हैं, बल्कि वे इनके बीच मध्य-मार्ग पर रहते हैं। (अल-फ़ुरक़ान, 67)

नबी (मुहम्मद) ने अतिशयोक्ति से रोका। आप ने कहा धर्म में अतिशयोक्ति से बचो। क्योंकि तुम से पूर्व काल के लोगों को अतिशयोक्ति ने नाश किया। आप ने संतुलन रखने और हर अधिकारी को उसका अधिकार देने का आदेश दिया। आप ने कहाः तुम्हारे ईशवर का तुमपर अधिकार है। तुम्हारे अपने शरीर का तुमपर अधिकार है। तुम्हारे परिवार वालों का तुमपर अधिकार है। हर अधिकारी को उसका अधिकार दो।




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