प्रसन्नता के कारण

प्रसन्नता के कारण

प्रसन्नता के कारण

इस्लाम के अनुसार हमारे इस सांसारिक जीवन की प्रसन्नता के लिए बहुत से कारण है।

अल्लाह पर विश्वास और एकीकरण के सिद्धांत से मिलने वाली प्रसन्नता

$Bernard_Shaw.jpg*

बरर्नाडशाह

ब्रिटीष लेखक
जीवन और भविष्य जीवन का र्धम
ज्ञानी मानव प्रक्रुतिक रूप से इस्लाम कि ओर अपने भीतर खीँचाओ पाता है, क्यों कि इस्लाम हि वो र्धम है जो जीवन और भविष्य जीवन कि ओर एक ही निगाह से देखता है ।

एकीकरण के सिद्धांत से मिलनेवाले सुख और राहत के समान कोई अन्य सुख या शाँती नही है। ईशवर ने कहा। जो लोग ईमान लाये और अपने ईमान में किसी ज़ुल्म (शिर्क) की मिलावट नही की, वही लोग हैं जो भय-मुक्त हैं और वही सीधे मार्ग पर हैं। (अल-अनआम, 82)

इसीलिए एकीकरण के सिद्धांत की संपूर्णता के अनुसार संसार और परलोक के जीवन में शाँती, प्रसन्नता और सुख प्राप्त होता है। क्योंकि ईशवर इस सिद्धांत के रखनेवाले व्यक्ति को मान्सिक सुख और चैन प्रदान करता है। शिर्क (भागीदार) – ईशवर हमें इससे मुक्ति दे – मानव के मन में अप्रसन्नता और तंगी पैदा करता है, इस प्रकार कि वह आकाश की ओर चढ़ रहा हो। ईशवर ने कहा । अतः (वास्तविकता यह है कि) जिसे अल्लाह सीधे मार्ग पर लाना चाहता है उसका सीना इस्लाम के लिए खोल देता है। और जिसे गुमराही में पड़ा रहने देने चाहता है, उसके सीने को तंग और भिंचा हुआ कर देता है, मानो वह आकाश में चढ़ रहा है। इस तरह अल्लाह उन लोगों पर गन्दगी डाल देता है जो ईमान नही लाते। (अल-अनआम, 125)

$Nazmi_Luqa.jpg*

नज़मी लुख़ा

इजिप्शियन दर्षनक और आलोचक
सरल सिध्दाँत
इस्लाम र्धम का सिध्दाँत बिलकुल सरल है, जिस पर विशवास रखने से हर प्रकार के भ्रम और डर का रास्ता बंद हो जाता है, इसी प्रकार से हर मानव के भीतर सुख पैदा करता है। इस सिध्दाँत का द्वार हर मानव के लिए उपलब्द है। किसी को उसकी जाति या रंग के कारण इस द्वार से रोका नही जायेगा। इसी प्रकार से न्यमित समाँता के कारण इस देवत्व सिध्दाँत में हर मानव अपने लिए एक स्थान पाता है, जिस में ईशवर के डर के सिवा कोई किसी से सर्वश्रेष्ट नही है।

वह व्यक्ति जिसका सीना ईशवर ने इस्लाम के लिए खोल दिया हो, वह अपने ईशवर की ओर से प्रकाश पर है। और वह व्यक्ति शिर्क (भागीदार) के अंधेरे में हो, ईशवर की याद से विस्मरण हो, उसका मन कठोर हो गया हो। वह खुली गुमराही में पडा हो। यह दोनों प्रकार के व्यक्ति कभी एक समान नही होते। ईशवर ने कहा। अब क्या वह व्यक्ति जिसका सीना (ह्रदय) अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया, अतः वह अपने रब की ओर से प्रकाश पर है, (उस व्यक्ति के समान होगा जो कठोर ह्रदय और अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल है)। अतः तबाही है उन लोगों के लिए जिनके दिल कठोर हो चुके हैं अल्लाह की याद से ख़ाली होकर। वही खुली गुमराही में पड़े हुए हैं। (अल-जुमर, 22)

वह व्यक्ति जो शिर्क (भागीदार) के अंधेरों में डूबा हुआ था। फिर ईशवर ने अपनी दया से उसको मार्गदर्शन किया हो। यह उस व्यक्ति के समान कभी नही हो सकता जो शिर्क के अंधेरों में डूबा हुआ हो और उससे बाहर न आनेवाला हो। ईशवर ने कहा। क्या वह व्यक्ति जो पहले मुर्दा था, फिर उसे हमने जीवित किया और उसके लिए प्रकाश उपलब्ध किया जिसको लिए हुए वह लोगों के बीच चलता-फिरता है, उस व्यक्ति की तरह हो सकता है जो अंधेरों में पड़ा हुआ हो, उससे कदापि निकलनेवाला न हो। ऐसे ही इन्कार करनेवालों के कर्म उनके लिए सुहावने बनाये गये हैं।(अल-अनआम, 122)

प्रभुत्वशाली अल्लाह को याद करना, उससे प्रार्थना करना, और उससे निकट रहना

सांसारिक जीवन की शोभा कितनी ही ज्यादा मानव को प्राप्त हो जाये। प्रसन्नता को उत्पन्न करने वाले कितने ही ज़्यादा कारक वह रखता हो। फिर भी जब तक वह ईशवर के मार्ग से दूर होगा, कभी प्रसन्नता प्राप्त नही कर पायेगा। मानव के लिए सुख की उपलब्धी ईशवर के निकट होने, उसकी छाया और उसकी याद करने में है। ईशवर ने कहा। ऐसे ही लोग हैं जो ईमान लाये और जिनके दिलों को अल्लाह की याद से आराम और चैन मिलता है। (अल-रअद, 28)

$Lauren_Booth.jpg*

लुरैन बोत

ब्रिटीष वकील
वास्तविक सुख
नमाज़ पडते समय मुसलमानों के भीतर जो भावनाएँ होती है उनही भावनाओं से मैं भी प्रभावित हुँ। यही वो विषय है जिसकी मैं आभारी हुँ, इसी प्रकार से मेरी संतान भी सुख में है, और निशचिंत रूप से मुझे इस्से अधिक कुछ नही चाहिये।

इसका कारण यह है किः दिल में एक बिखराव है। जिसको ईशवर के निकट होने में ही इकट्ठा किया जा सकता है। दिल में भ्रम होता है। जिसको तन्हाई में ईशवर से प्रेम के द्वारा दूर किया जा सकता है। दिल में दुख है। जो केवल ईशवर ने ज्ञान और उसके साथ सद्व्यवहार करते हुए सुखी रहनेसे दूर होता है। दिल में एक चिंता है। जो केवल ईशवर के साथ बैठने और उसी से प्रार्थना करने से समाप्त होती है। दिल में पश्चाताप की आग है। जो केवल ईशवर के आदेश, निशेध, फैसले, और ईशवर से मिलने के समय तक धैर्य से काम लेने पर बुझ जाती है। दिल में गंभीर इच्छा है। जो केवल एक ईशवर को अपना लक्ष्य बनाने के बिना पूरी नही हो सकती। दिल में एक आवश्यकता है। जो केवल ईशवर से प्रेम, उसका प्रतिस्थापन, सदा उसकी याद और ईमानदारी से पूरी होती है। चाहे संसार और उसमें स्थिर सारी चीज़ें प्राप्त हो जायें, तो भी कभी यह आवश्यकता पूरी नही होगी। 4. मदारी जुससालीकीन, पन्ना नं 743

अच्छे कार्य

ईशवर ने कहा । जो लोग ईमाम लायें और उन्होंने अच्छे कर्म किये उनके लिये सुख-सौभाग्य है और लौटने का अच्छा ठिकाना है। (अल-रअद, 29)

जो लोग दिल से ईशवर, उसके एंजील (फरिशते), पुस्तकों, रसूलों और क़ियामत के दिन पर विश्वास रखते हैं। इस विश्वास का अच्छे कार्य (दिल के कार्य, जैसे ईशवर से प्रेम, डर और उससे आशा । शारीरिक कार्य जैसे नमाज़ वग़ैरह) से सबूत पेश करते हों। तो उनको पूर्ण सुख और राहत की स्थिती मिलती है। इस प्रकार कि वे संसार और परलोक में ईशवर द्वारा सम्मान प्राप्त होता है। ईशवर ने कहा। निस्संदेह वे लोग जो ईमान लाये हैं और जो यहुदी हुए हैं और साबी और ईसाई, उनमें से जो कोई भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाये और अच्छा कर्म करे तो ऐसे लोगों को न तो कोई डर होगा और न वे शोकाकुल होंगे। (अल-माइदा, 69)

रसूल (मुहम्मद) नमाज़ और ईशवर का अनुसरण करने में सुख और आनंद पाते थे। आप कहा करते थे ऐ बिलाल नमाज़ खड़ी करो। हमें नमाज़ से सुख मिलता है। (इस हदीस को इमाम अबू दाऊद ने वर्णन किया है।)

दान प्रसन्नता का रहस्य है

यह एक अनुभविक और वास्तविक बात है। हम यह देखते हैं कि जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करता है, वह लोगों में सबसे अधिक प्रसन्न और प्रिय है। ईशवर ने कहा। तुम नेकी और वफ़ादारी के दर्जे को नही पहुँच सकते जब तक कि उन चीज़ों को (अल्लाह के मार्ग में) ख़र्च न करो, जो तुम्हें प्रिय है। और जो चीज़ भी तुम ख़र्च करोगे, निश्चय ही अल्लाह को उसका ज्ञान होगा। (आले-इमरान, 92)

दान के कई प्रकार है। ईशवर ने धन देने को इस्लाम का एक भाग बनाया। ज़कात को धनी पर निर्धनी को देने के लिए फ़र्ज़ (आवश्यक) किया है। ईशवर ने इस दान देने में यह निर्णय लिया कि वह प्रसन्न मन से ईमानदारी के साथ मानव की सर्वश्रेष्ठ धन से दिया जाय, और लोगों पर एहसान न प्रकट किया जाय। ईशवर ने कहा । ऐ ईमानवालों। अपने सदक़ों को एहसान जताकर और दुख देकर उस व्यक्ति की तरह नष्ट न करो। (अल-बक़रा, 264)

बल्कि दान के मतलब को ईशवर ने फैला दिया है। ताकि माल के अतिरिक्त हर चीज़ दान में शुमार हो जाय। चाहे धन हो या भोजन, प्रयत्न हो या कर्म । वे मुहताज, अनाध और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखते हुए खिलाते हैं, हम तो केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए तुम्हें खिलाते हैं, तुमसे न कोई बदला चाहते हैं और न शुक्रिया । (अल-दहर, 89)

बल्कि एक मुस्कुराहट भी दान है। ईशवर के रसूल ने कहाः आपका अपने भाई के सामने मुस्कुराना भी दान है (इस हदीस को इमाम तिर्मिजी ने वर्णन किया है) ईशवर के रसूल ने कहा जो अपने किसी भाई की सहायता में होता है, ईशवर उसकी सहायता में होता है। जो किसी मुस्लिम का कष्ट दूर करता है, तो क़ियामत के कष्टों में से कोई कष्ट ईशवर उससे दूर करता है, जो किसी मुस्लिम के ग़लती को छिपाता है, क़ियामत के दिन ईशवर उसकी ग़लतियों को छुपाता है। (इस हदीस को इमाम अबू दाऊद ने वर्णन किया है।) निस्संदेह यही वह दान है जिससे सांसारिक प्रसन्नता अवश्य उपलब्ध होती है। सांसारिक उद्देश्य या एहसान और तकलीफ़ के साथ दान देने से किसी तरह कि प्रसन्नता प्राप्त नही होती। चाहे दान देनेवाला इसके अतिरिक्त कुछ भी दिखाये ।

भरोसा प्रसन्नता की चाबी है

अधिकतर समय मानव किसी विषय पर स्वयं असहाय होने की भावना अपने अन्दर पाता है। तो वह किसी बलवान की सहायता लेता है, और अपनी इच्छाओं को पाने के लिए उसपर भरोसा करता है। ईशवर से अधिक बलवान कौन है। प्रसन्नता की चाबी उस बलवान और शक्तिमान ईशवर पर भरोसा करना है, जिसके हाथ में धरती और आकाशों का शासन है। वह जब किसी विषय का इरादा (निर्णय) करता है, तो उससे कहता है, हो जा। और वह हो जाती है। ईशवर ने कहा। उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करता है तो उससे कहता है, हो जा। और वह हो जाती है। (या-सीन, 82)

इसीलिए ईशवर ने केवल उसी पर भरोसा करने का आदेश दिया है। ईशवर ने कहा। अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमानवाले हो। (अल-माइदा, 23)

इसके अतिरिक्त मानव कौन-सी पर्याप्तता और आवश्यकताओं को पूरा करने पर सहायक है। यह बात वही मानव जान सकता है, जो इससे अनुभव हआ हो। ईशवर ने कहा। और अल्लाह पर भरोसा रखो, और अल्लाह का कार्यसाधक होना काफ़ी है। (अल-निसा, 81)

निस्संदेह यह भरोसा मानव के लिए सुख, शाँती, प्रसन्नता, पर्याप्तता और आवश्यकताओं को पूरा करने पर सहायक है। यह बात वही मानव जान सकता है, जो इससे अनुभव हुआ हो। ईशवर ने कहा । जो कोई अल्लाह का डर रखेगा, उसके लिए वह (परेशानी से) निकलने की राह पैदा करदेगा। और उसे वहाँ से रोज़ी देगा जिसका उसे गुमान भी न होगा। जो अल्लाह पर भरोसा करे तो वह उसके लिए काफ़ी है। निश्चय ही अल्लाह अपना काम पूरा करके रहता है। अल्लाह ने हर चीज़ का एक अन्दाज़ा नियत कर रखा है। (अल-तलाक़, 2,3)

और यह भी कि ईशवर भरोसा रखने वाले को शैतान से सुरक्षित रखता है। ईशवर ने कहा। उसका तो उन लोगों पर कोई ज़ोर नही चलता जो ईमान लाये और अपने रब पर भरोसा रखते हैं। (अल-नहल, 99)

दुशमनों से भी सुरक्षित रखता है। ईशवर ने कहा । ये वही लोग हैं जिनसे लोगों ने कहा कि तुम्हारे विरुद्ध लोग इकट्ठा हो गये हैं, अतः उनसे डरो । तो इस चीज़ ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया और उन्होंने कहा, हमारे लिए तो बस अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा कार्य-साधक है। तो वे अल्लाह की ओर से प्राप्त होनेवाली नेमत और उदार कृपा के साथ लौटे। उन्हें कोई तकलीफ़ छू भी नही सकी और वे अल्लाह की इच्छा पर चले भी, और अल्लाह बड़ा ही उदार कृपावाला है। वह तो शैतान है जो अपने मित्रों को डराता है। अतः तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझी से डरो यदि तुम ईमान वाले हो। (आले-इमरान, 175)

भरोसे का मतलब और उसकी हक़ीक़त केवल एक ईशवर पर दिल से भरोसा करना। परन्तु जब दिल सामाग्री पर भरोसा करने से ख़ाली हो, तो इनका उपयोग कोई नष्ट की बात नही है। इसी प्रकार केवल ईशवर पर भरोसा होने का दावा करना और ईशवर के अतिरिक्त दूसरों पर भरोसा करना भी लाभदायक नही है। जीभ के द्वारा भरोसे की बातें करना कुछ है और दिल से भरोसा करना कुछ और बात है।

अल्लाह पर भरोसा और यक़ीन रखने पर मिलने वाली प्रसन्नता

%%

वैज्ञानिक अध्यान इस बात कि पुष्टी करते हैं कि दूसरों कि सहायता करने से मान्सिक तनाव दूर होता है। परन्तु मान्सिक रोग के वंशेषज्ञ का मानना है कि दूसरों कि सहायता करने से मान्सिक तनाव कम होता है। क्यों के दूसरों कि सहायता का प्रयास करने से निकोटीन हारमोन का अधिक स्राव होता है। यह हारमोन मान्सिक सुख के लिए मदद देता है। अमेरिकन स्वास्थ संवर्धन संस्थान के पूर्व अध्यक्ष अलान लेकस का कहना हैः दूसरों कि सहायता करना मान्सिक तनाव के दबाव को कम करता है, क्यों कि जब कोई मानव दूसरों कि सहायता करता है तो वह अपने कष्ट और चिंताओं के बारे में विचार करना कम करता है, इस कारण वह मान्सिक सुख से प्रभावित होता है।

निश्चय ईमान मुस्लिम के मन में ईशवर पर संपूर्ण भरोसा यक़ीन पैदा करता है। जो उसके अन्दर आत्मविश्वास का कारण होती है। फिर वह इस संसार में किसी भी चीज़ से नही डरता। क्योंकि उसको यह ज्ञान होता है कि सारा मामला ईशवर के हाथ में है। ईशवर ने कहा। और यदि अल्लाह तुम्हें कोई कष्ट पहुँचाए तो उसके अतिरिक्त उसे कोई दूर करनेवाला नही, और यदि वह तुम्हें कोई भलाई पहुँचाए तो उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (अल-अनआम, 17)

इसी प्रकार मुस्लिम का यह विश्वास होता है कि उसकी रोज़ी रोटी एक ईशवर के हाथ में है। ईशवर ने कहा। तुम तो अल्लाह से हटकर बस मूर्तियों को पूज रहे हो और झूठ गढ़ रहे हो। तुम अल्लाह से हटकर जिनको पूजते हो वे तुम्हारे लिए रोज़ी का भी अधिकार नही रखते। अतः तुम अल्लाह ही के यहाँ रोज़ी तलाश करो और उसी की बन्दगी करो और उसके आभारी बनो। तुम्हें उसी की ओर लौटकर जाना है। (अल-अनकबूत, 17)

धरती में चलने-फिरनेवाले हर प्राणी की रोज़ी-रोटी का ज़िम्मेदार ईशवर है। ईशवर ने कहा। धरती में चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है। वह जानता है जहाँ उसे ठहरना है और जहाँ उसे सौंपा जाना है। सब कुछ एक स्पष्ट किताब में मौजूद है। (हूद, 6)

चारे वह प्राणी अपनी रोज़ी स्वयं लाने की क्षमता न रखता हो। ईशवर ने कहा। कितने ही चलनेवाले जीवधारी हैं जो अपनी रोज़ी उठाए नही फिरते। अल्लाह ही उन्हें रोज़ी देता है और तुम्हें भी। वह सब कुछ सुनता, जानता है। (अल-अनकबूत, 60)

मुस्लिम का यह विश्वास होता है कि उसकी रोज़ी निश्चित रूप से उसको मिलकर रहेगी। यह ऐसा सत्य जिसमें कोई संदेह नही। ईशवर ने कहा। और आकाश में ही तुम्हारी रोज़ी है और वह चीज़ भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है। अतः सौगन्ध है आकाश और धरती के रब की । निश्चय ही वह सत्य बात है ऐसी है जैसे तुम बोलते हो। (अल-ज़ारियात, 22, 23)

मुस्लिम का यह भी यक़ीन होता है कि ईशवर ने लोगों के बीच रोज़ी नाप-तोल के साथ बाँट दी है। ईशवर ने कहा। निस्संदेह मेरा रब जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है, किन्तु अधिकांश लोग जानते नही। (सबा, 36)

यह भी दृढ विश्वास होता है कि ईशवर सदा उसको अच्छी बुरी परिस्थितियों में डालकर परीक्षा लेते हैं। ईशवर ने कहा। हर जीव को मौत का मज़ा चखना है और हम अच्छी और बुरी परिस्थितियों में डालकर तुम सब की परीक्षा करते हैं। अन्ततः तुम्हे हमारी ही ओर पलटकर आना है। (अल-अंबिया, 35)

अगर ईशवर द्वारा कृपा न होती तो अवश्य मानव विनाश हो जाता। इसी प्रकार मुस्लिम यह ज्ञान रखता है कि वह इस संसार में अतिथी है। चाहे उसकी उम्र बडी हो या छोटी। निस्संदेह वह परलोक की ओर लौट जानेवाला है। इसीलिए वह संसार में इसी नियम के अनुसार चलता है। सांसारिक दुविधाओं से डरता नही, और न ईशवर के अलावा किसी और से डरता है। चाहे उसका दुशमन बिल्कुल उसके निकट हो। जब मूसा को फ़िरऔन की सेना ने पकड़लिया तो मूसा के बारे में ईशवर ने यह कहा। फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, हम तो पकडे गये। उसने कहा, कदापि नही, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा। तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, अपनी लाठी सागर पर मारा तो वह फट गया और (उसका) प्रत्येक टुकड़ा एक बडे पहाड़ की भाँति हो गया। और हम दूसरों को भी निकट ले आये। हमने मूसा को और उन सबको जो उसके साथ ते, बचा लिया। और दूसरों को डुबो दिया। निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नही। (अल-शुअरा, 61, 67)

विश्वास रखने वालों के सरदार (मुखिया) मुहम्मद अगर दुशमन को अपने पैरों तले भी पाते, तो आप उनको देखते कि वह (हत्या करने के लिए दुशमनों के पीछा करने के समय भी अपने ईशवर पर भरोसा रखनेवाले की भाषा में) अपने गुफ़ा के साथी अबूबकर से यह कहते हैं। शोकाकुल न हो। निस्संदेह अल्लाह हमारे साथ है। फिर अल्लाह ने उसपर अपनी ओर से सकीनत (प्रशान्ति) उतारी और उसकी सहायता ऐसी सेनाओं से की जिन्हे तुम देख न सके और इन्कार करनेवालों का बोल नीचा कर दिया। बोल तो अल्लाह ही का ऊँचा रहता है। अल्लाह अत्यंत प्रभुत्वशाली, तत्तवदर्शी है। (अल-तौबा, 40)

इसी प्रकार मुहम्मद का यह यक़ीन था कि मृत्यु देने वाला ईशवर है। इसीलिए वह मृत्यु से नही डरते। ईशवर ने कहा। अल्लाह ही प्राणों को उनकी मृत्यु के समय ग्रस्त करलेता है और जिसकी मृत्यु नही आई उसे उसकी निद्रा की अवस्था में (ग्रस्त करलेता है) । फिर जिसकी मृत्यु का फ़ैसला कर दिया है, उसे रोक रखता है। और दूसरों को एक नियत समय तक के लिए छोड़ देता है। निश्चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ है सोच-विचार करनेवालों के लिए। (अल-ज़ुमर, 42)

$Ernest_Renan.jpg*

अर्नेस्ट रिनान

फ्रेंच इतिहासकार
विशवास और जीवन
विशवास वह शक्ती है, जिसकी सहायता होना मानव के जीवन के लिए ज़रूरी है। और विशवास का खोना जीवन के कष्टों का सामना करने से कमज़ोर होने के समान है।

बल्कि आप को यह विश्वास था यह सत्य होनी है, जिससे भागने का कोई विकल्प नही है। ईशवर ने कहा। कह दो, मृत्यु जिससे तुम भागते हो, वह तो तुम्हें मिलकर रहेगी। फिर तुम उसकी ओर लौटाये जाओगे जो छिपे और खुले का जानने वाला है। और वह तुम्हें उससे अवगत करदेगा जो कुछ तुम करते रहे होगे। (अल-जुमुआ,8)

और यह भी विश्वास था कि मृत्यु उसके निश्चित समय पर ही आयेगी। ईशवर ने कहा। यदि अल्लाह लोगों को उनके अत्याचार पर पकड़ने ही लग जाता तो धरती पर किसी जीवधारी को न छोडता, किन्तु वह उन्हें एक निश्चित समय तक टाले जाता है। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न तो एक घडी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं। (अल-नहल, 61)

खुशी प्रसन्नता के मार्ग का द्वार है

$Roger_Du_Pasquier.jpg*

रोजयहीढु बारही

स्विस पत्रकार और आलोचक
भौतिक सभ्यतायें विनाश होजायेगी
मेरी यह खोज है कि इस्लाम अपने नियमों के द्वारा मन में सुख पैदा करता है। भौतिक सभ्यता अपने अनोयाई को निराश कि ओर लेजाती है, क्यों कि वे किसी बात पर विशवास नही रखते। इसी प्रकार से मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि पच्छिम के रहने वाले इस्लाम कि सत्यता के अहसास से दूर हैं, क्यों के वे इस्लाम के प्रति अपने भौतिकवादी नियमों के अनुसार निर्णय लेते हैं।

प्रसन्नता यह है कि मानव संतोष जीवन यापन करें। क्रोध और निराशा मानवीय जीवन, आत्मा और भावना को निम्न करदेते है। सुतुष्टता प्रसन्नता, सुख, शाँती और खुशी का द्वार है। संतुष्टता ईशवर द्वारा मानव का चयन होने पर मन में सुख और शाँती है। यह सुख और शाँती सांसारिक जीवन में होनेवाली हर घटना को मानव के लिए भलाई, प्रसन्नता और सुख का कारण बना देती है। फिर मानव ईशवर के अतिरिक्त किसी और की ओर चाहत नही रखता और न संसार के किसी सामाग्री पर निराश होता है। यह सुख मानव को प्रयास करने और ईशवर की प्रार्थना करनेवाला बना देता है। फिर वह ईशवर द्वारा। स्वयं को मिले हुए हिस्से से संतुष्ट रहता है। ताकि वह प्रसन्न जीवन यापन करे। संतुष्टता के कई प्रकार है।

1. ईशवर को अपना प्रभु, इस्लाम को धर्म, मुहम्मद को रसूल और नबी मानकर संतुष्ट रहना है। जो इससे संतुष्ट न हो वह सदा दुखी और भ्रम से जीवन यापन करता है। ईशवर के रसूल ने कहाः ईशवर को अपना प्रभु, इस्लाम को अपना धर्म और मुहम्मद को रसूल मानने वाला व्यक्ति विश्वास (ईमान) का मज़ा चकलिया। (इस हदीस को इमाम बुखारी ने वर्णन किया है।) जो व्यक्ति विश्वास का मज़ा न चके, वह प्रसन्नता का मज़ा भी न चक पायेगा। बल्कि सदा वह निराश और दुखी रहेगा। ईशवर से संतुष्ट होने का मतलब ईशवर की स्थिरता का यक़ीन, उसकी महानता, तत्वदर्शिता, समर्थता, ज्ञान और उसके पवित्र नामों की भावना, उसकी प्रार्थना पर विश्वास है। वरना वह संदेह, भ्रम, बीमारी और दुख है। (ईशवर हमें इससे सुरक्षित रखे।)

2. ईशवर के आदेश और उसकी शरिअत से संतुष्ट होना। ईशवर ने कहा। तो तुम्हें तुम्हारे रब की क़सम। ये ईमानवाले नही हो सकते जब तक कि अपने आपस के झगड़ों में ये तुमसे फ़ैसला न कराएँ। फिर जो फ़ैसला तुम कर दो उसपर ये अपने दिल में कोई तंगी न पाएँ और पूरी तरह मान लें। (अल-निसा, 65)

मानवता कई प्रकार कि असंपूर्ण विधि, आदेश और धार्मिक नियमों का अनुसरण करते हुए सांसारिक निराश, और दुख के कई मार्ग चलकर अनुभव कर चुकी। क्योंकि यह सारे नियम मानवीय है। न कि उस प्रजापति ईशवर की ओर से है, जो मानवता के लिए लाभदायक चीज़ों का अधिक ज्ञान रखता है। ईशवर ने कहा। क्या वह नही जानेगा जिसने पैदा किया। वह सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है। (अल-मुल्क, 14)

3. ईशवर के फैसले और उसके बनाये हुए नसीब से संतुष्ट होना। मानव ईशवर के फैसले और नसीब से संतुष्ट होता है। क्योंकि उसका यह विश्वास होता है, ईशवर की अनुमति के बिना किसी कष्ट से पीडित होना संभव नही है। यह भी विश्वास होता है कि ईशवर उसके दिल को मार्गदर्शन दिखायेगा। ईशवर ने कहा। अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई भी मुसीबत नही आती। जो अल्लाह पर ईमान ले आये अल्लाह उसके दिल को मार्ग दिखाता है, और अल्लाह हर चीज़ को भली-भाँति जानता है। (अल-तग़ाबुन, 11)

मानव ईशवर के फैसले और बनाये हुए नसीब से संतुष्ट रहता है। क्योंकि वह जानता है कि तकलीफ़ को दूर करनेवाला केवल ईशवर ही है। ईशवर ने कहा। यदि अल्लाह तुम्हें किसी तकलीफ़ में डाल दे तो उसके सिवा कोई उसे दूर करनेवाला नही और यदि वह तुम्हारे लिये किसी भलाई का इरादा करले तो कोई उसके अनुग्रह को फेरने वाला भी नही। वह इसे अपने बन्दों में से जिस तक चाहता है, पहुँचाता है और वह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है। (यूनुस, 107)

$Rex_Ingram.jpg*

रेक्स इन्नग्राम

विषय सिनेमा निर्देशक
इस्लाम र्धम कि आध्यात्मिकता
मेरा यह विशवास है कि इस्लाम ही वह र्धम है जौ मन में सुख और शाँती पैदा करता है और इस जीवन में मान्सिक चैन और मनोरंजन का कारण होता है। निशचिंत रूप से इस्लाम कि आध्यात्मिकता मेरे मन में बसगई है, परन्तु मै देवत्व निर्णय पर विशवास, सुख और दुख जैसी भौतिक भावनाओं कि परवाह ना करने कि अनुग्रह से मालामाल हैं।

विश्वास (ईमान) का मामला बडा विचित्र है, वह मुस्लिम के मन में ईशवर द्वारा बनाये गये नसीब से संतुष्ट, दुविधा और समस्याओं पर धैर्य से काम लेने, ईशवर की ओर से मिली हुई अनुग्रह पर आभारी होना सिखाता है। यह बात आंतरिक सुख पैदा करती है, जो मुस्लिम के अतिरिक्त किसी और को प्राप्त नही होती है। ईशवर के रसूल ने कहाः मुस्लिम का मामला बडा विचित्र है। इस प्रकार कि उसकी हर चीज़ भलाई है। यह मुस्लिम के अलावा किसी और को प्राप्त नही है। अगर उसको सुख मिलजाये, वह ईशवर का आभारी हो जाये, तो यह उसके लिए भलाई है। अगर उसको दुख मिले, वह धैर्य से काम ले, तो यह भी उसके लिए भलाई है। (इस हदीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णन किया है।) बल्कि रसूल ने हमें यह भी शिक्षा दी है, जब सांसारिक सामाग्री में हम से अधिक किसी को देखे, तो भी कैसे संतुष्ट रहे। आपने कहा तुम स्वयं से निम्न लोगों की ओर देखो। उच्च लोगों की ओर न देखो। क्योंकि ईशवर द्वारा मिली हुई अनुग्रह को कम ना समझने के लिए यह चीज़ अधिक सहायकारी है। (इस हदीस पर इमाम बुख़ारी और इमाम मुस्लिम सहमत है।)




Tags: